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बिहार की लोक नृत्य का इतिहास

बिहार, जो अपनी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है, लोक नृत्यों की समृद्ध परंपरा का भी धनी है। ये नृत्य केवल प्रदर्शन नहीं हैं, बल्कि राज्य के त्योहारों, रीति-रिवाजों और दैनिक जीवन से गहराई से जुड़े हुए हैं। प्रत्येक नृत्य खुशी, भक्ति, प्रेम और ग्रामीण जीवन की कहानियाँ प्रस्तुत करता है।

उत्पत्ति और सांस्कृतिक महत्व

बिहार के लोक नृत्यों की जड़ें प्राचीन परंपराओं में हैं। ये नृत्य सामूहिक भावनाओं, प्रकृति के उत्सव और देवी-देवताओं को श्रद्धांजलि के रूप में विकसित हुए। कृषि चक्र, त्योहारों, विवाह और धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान किए जाने वाले ये नृत्य मनोरंजन के साथ-साथ सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने का साधन भी हैं।

इन नृत्यों के साथ अक्सर लोकगीत गाए जाते हैं, जो मैथिली, भोजपुरी और मगही जैसी क्षेत्रीय बोलियों में होते हैं। संगीत और गति सरल होते हुए भी गहरे अर्थपूर्ण होते हैं, जो सामुदायिकता, आध्यात्मिकता और उत्सव के विषयों को प्रतिबिंबित करते हैं।

बिहार के प्रमुख लोक नृत्य

  1. झिझिया:
    • झिझिया एक पारंपरिक नृत्य है जो महिलाएं नवरात्रि के दौरान देवी दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए करती हैं। महिलाएं अपने सिर पर छिद्रयुक्त मिट्टी के घड़े रखकर नृत्य करती हैं, जिनमें तेल के दीपक जलते हैं। यह नृत्य भक्ति का प्रतीक है और समृद्धि व सुरक्षा का आशीर्वाद मांगता है।
  2. झूमर:
    • झूमर एक जीवंत नृत्य है जो फसल कटाई के मौसम और उत्सवों के दौरान किया जाता है। इसमें पुरुष और महिलाएं दोनों भाग लेते हैं और भरपूर फसल की खुशी मनाते हैं। इसकी तालबद्ध गति और मधुर गीत कृषि जीवनशैली और सामुदायिक सद्भाव को दर्शाते हैं।
  3. कजरी:
    • कजरी एक मानसून नृत्य है जो वर्षा की प्रतीक्षा से जुड़ा है। महिलाएं समूह में नृत्य करती हैं, अक्सर आम के पेड़ों के नीचे, और अपने भावनाओं को सुंदर आंदोलनों और गीतों के माध्यम से व्यक्त करती हैं। यह नृत्य भोजपुरी भाषी क्षेत्रों में लोकप्रिय है।
  4. छऊ नृत्य:
    • छऊ नृत्य, जो मुख्य रूप से झारखंड और ओडिशा से संबंधित है, बिहार के जनजातीय समुदायों में भी प्रचलित है। यह नृत्य अपने नाटकीय मुखौटों और युद्ध-कला जैसे आंदोलनों के लिए जाना जाता है और पौराणिक कथाओं को दर्शाता है।
  5. पैका नृत्य:
    • पैका एक पारंपरिक युद्ध नृत्य है जिसे योद्धा युद्ध पर जाने से पहले करते थे। इसमें जोरदार आंदोलनों, युद्ध तकनीकों और तलवारों या लाठियों का उपयोग किया जाता है। आज इसे त्योहारों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के दौरान बिहार की योद्धा विरासत के सम्मान में किया जाता है।
  6. विदेशिया:
    • विदेशिया एक नाटकीय लोक नृत्य-नाटक है जो भोजपुरी क्षेत्र में उत्पन्न हुआ। भिखारी ठाकुर द्वारा निर्मित, यह प्रवासन, परिवारिक विछोह और जातिगत भेदभाव जैसे सामाजिक मुद्दों को उजागर करता है। यह नृत्य भावनात्मक हाव-भाव और गहन कहानी कहने के लिए प्रसिद्ध है।
  7. नारदी:
    • यह एक कीर्तनिया नाच है। इसमें परम्परागत साज मृदंग एवं झाल का प्रयोग किया जाता है। कीर्तनकार इस नृत्य के दौरान विभिन्न प्रकार के स्वांग किया करते हैं।
  8. गंगिया:
    • पतित पावनी गंगा मात्र एक नदी ही नहीं अपितु भारतीय संस्कृति की जननी है। गंगा बिहार की प्रमुख नदियों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि इसके पवित्र जल से स्नान करने से मानव अपने समस्त पापों से मुक्त हो जाता है। गंगा स्तुति महिलाओं के द्वारा नृत्य के माध्यम से की जाती है जिसे गंगिया नृत्य कहा जाता है।
  9. बोलबै:
    • यह नृत्य पति के परदेश जाते समय के प्रसंग से जुड़ा है। यह अंगप्रदेश (भागलपुर) तथा इसके आस-पास के इलाकों में प्रचलित है।
  10. सामा-चकेवा
    • यह नृत्य बिहार के मिथिलांचल का एक महत्त्वपूर्ण नृत्य है। इसमें महिलाएँ अपने भाईयों की रक्षा के लिए निवेदन करती हैं। इसे कार्तिक मास में किए जाने की परम्परा है।
  11. घंटो:
    • भारत देश की परम्परा है अतिथि देवो भव। परंतु जब घर में कुछ खाने का न हो तब अतिथि का आगमन दुःख का विषय होता है। इस नृत्य के माध्यम से ससुराल में रह रही गरीब बहन को जब भाई के आने की सूचना मिलती है तो वह काफी खुश हो जाती है, लेकिन खाने का अभाव उसे परेशान कर देता है। सत्कार की चिंता में विरह गीत गाया जाता है तथा बेचैनी भरा नृत्य भी किया जाता है।
  12. इरनी-बिरनी:
    • यह लोक नृत्य अंगिका का एक प्रमुख नृत्य है। इस नृत्य की विषयवस्तु पति-पत्नी के बीच मनमुटाव है।
  13. झरनी:
    • मुसलमानों द्वारा मुहर्रम के अवसर पर झूमते हुए गाया जाने वाला एक प्रकार का नृत्य और गीत है।
  14. देवहर:
    • देवी-देवताओं का प्रतिनिधित्व करता हुआ अत्यन्त प्राचीन गीत एवं नृत्य है। बिहार और झारखंड में यह प्रचलित है। कहीं-कहीं इस नृत्य को भगता नाच के नाम से भी जाना जाता है।
  15. डोमकच:
    • शादी-ब्याह के अवसर पर महिलाओं द्वारा समूह में स्वांग एवं नृत्य के रूप में किया जाने वाला यह एक लोकप्रिय नृत्य नाटिका है। जब बारात दुल्हन के घर शादी के लिए रवाना हो चुकी होती है और घर पर सिर्फ महिलाएँ ही रह जाती हैं तो महिलाओं द्वारा पुरुषों का वेश बनाकर नृत्य नाटिका किया जाता है।
  16. बगुलो:
    • यह उत्तर बिहार का अत्यन्त लोकप्रिय लोक नृत्य है। इसमें ससुराल से रूठकर जाने वाली एक स्त्री का राह चलते दूसरे स्त्री के साथ नोंक-झोंक का बड़ा ही सजीव चित्रण किया जाता है।
  17. जोगीरा नाच:
    • होली के अवसर पर पुरुषों द्वारा महिलाओं का स्वांग रच के किया जाने वाला नृत्य।
  18. होरी:
    • बसंत के आगमन पर गाया जाने वाला गीत और नृत्य होली के दिन अपने चरम पर होता है।
  19. नटुआ नाच:
    • मिथिला में पुरुषों के द्वारा महिलाओं का नृत्य नटुआ नाच कहलाता है।
  20. लौंडा नाच:
    • यह एक विशेष प्रकार का नृत्य है जिसमें पुरुष महिला का स्वांग करके नृत्य करते हैं। बिहार में इसकी प्राचीन परम्परा है।
  21. गोदनी:
    • इस लोक नृत्य में मछली बेचने वाली तथा ग्राहकों का स्वांग किया जाता है।
  22. घो-घो रानी:
    • छोटे-छोटे बच्चों का खेल, जिसे लोक शैली में घो-घो रानी कहा जाता है। इस नृत्य में एक लड़की बीच में रहती है तथा चारों तरफ से लड़कियाँ गोल घेरा बनाकर गीत गाती हैं और घूमती हैं।
  23. धनकटनी :
    • फसल कट जाने के बाद किसान सपरिवार खुशियाँ मनाता हुआ गाता और नाचता है। जो धन कटनी नाच के रूप में जाना जाता है।
  24. जाट-जटिन:
    • एक विशेष जाति जाट और उनकी पत्नी जटिन के द्वारा किया जाने वाला गीत और नृत्य है। इसे सामान्यतः इन्द्र भगवान को मनाने के लिए वर्ष ऋतु में किया जाता है।
  25. मांझी नृत्य:
    • नदियों में नाविकों द्वारा यह गीत नृत्य मुद्रा में गाया जाता है।
  26. पावड़िया नृत्य:
    • शिशु के जन्म होने पर किन्नरों के द्वारा किया जाने वाला बधाई गीत और नृत्य पावड़िया नृत्य कहलाता है।
  27. झमटा:
    • बिहार के पश्चिम चम्पारण में रहने वाली एक मात्र जनजाति समुदाय थारूओं का लोकनृत्य झमटा अपने आप में एक सांस्कृतिक विरासत है।
  28. विद्यापत:
    • मिथला में मैथिल कोकिल विद्यापति के गीतों का नृत्य के रूप में प्रस्तुति विद्यापत कहलाता है।

विषय और प्रतीकवाद

बिहार के लोक नृत्य अक्सर प्रकृति, भक्ति, प्रेम और सामाजिक कथाओं के विषयों पर केंद्रित होते हैं। ये नृत्य लोगों की दृढ़ता, रचनात्मकता और सामुदायिक भावना का प्रतीक हैं। नर्तक साधारण लेकिन अर्थपूर्ण वस्त्रों, जैसे मिट्टी के घड़े, लाठियों और दीपकों का उपयोग करते हैं।

वेशभूषा और आभूषण इन प्रदर्शनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पुरुष और महिलाएं पारंपरिक परिधानों जैसे धोती, साड़ी और पगड़ी पहनते हैं, जो गहनों और फूलों से सजे होते हैं।

विकास और समकालीन प्रासंगिकता

समय के साथ, बिहार के लोक नृत्यों ने बदलते संदर्भों के अनुसार रूपांतरित किया है। जहाँ पारंपरिक सेटिंग्स जैसे गांव की सभाएँ और त्योहार प्रचलित हैं, वहीं अब ये नृत्य सांस्कृतिक उत्सवों और राष्ट्रीय कार्यक्रमों में मंच पर प्रदर्शित किए जाते हैं। ये नृत्य भारत की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के महत्वपूर्ण भाग के रूप में पहचाने जाते हैं।

सरकारी पहल, गैर-सरकारी संगठनों और सांस्कृतिक संगठनों ने इन कला रूपों के संरक्षण और प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कार्यशालाएँ, प्रतियोगिताएँ और डिजिटल मंचों ने इन पारंपरिक नृत्यों को नया जीवन दिया है, जिससे युवा पीढ़ी और वैश्विक दर्शकों को आकर्षित किया जा रहा है।

निष्कर्ष बिहार के लोक नृत्य राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रमाण हैं। भक्ति से भरे झिझिया से लेकर नाटकीय विदेशिया तक, ये नृत्य बिहार की परंपराओं और मूल्यों का सार प्रस्तुत करते हैं। जैसे-जैसे ये विकसित हो रहे हैं और नए रूप ले रहे हैं, ये नृत्य अतीत और वर्तमान के बीच सेतु का काम कर रहे हैं और बिहार की सांस्कृतिक धरोहर की कालातीत भावना का उत्सव मना रहे हैं।

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